सावधान रहें,,विभीषण हर जगह आज भी विद्यमान हैं। स.संपादक शिवाकांत पाठक।
जिला ब्यूरो चीफ मोहसिन अली,,,
त्रेता युग में रावण के सगे भाई का नाम विभीषण था जिसने अपनें ही ज्येष्ठ भ्राता रावण कि नीतियों का विरोध प्रकट करते हुए रावण को समझाने का प्रयास किया था पंरतु रावण ने उसे नकारते हुए धक्के मार कर उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया था,, इस बात पर विभीषण ने रावण को त्याग कर राम की शरण ली,, सत्य का साथ दिया अंत में रावण की सपरिवार मृत्यु हो जाती है,, रावण की मृत्यु पर विभीषण को कुछ पल अपने अतीत की याद आती है और वह अपनी भूल का पश्चाताप करते हुए कहता है कि आज एक भूल के कारण मैंने तीनों लोको में विजय प्राप्त करने वाला भाई खो दिया,, बहुत पछतावा होता है उसे लेकिन उसके अंतर्मन में राज्य पाने की ललक उसकी भूल पर पर्दा डालने में कामयाब हो जाती है,, यहां पर बात सिर्फ रावण के भाई की ही नहीं अपितु उन सभी विभीषणों की हो रही है जो कोई भी क्षेत्र हो, चाहे कोइ भी संगठन, समाज सेवी संस्थाएं, कोइ भी विभाग,, या फिर पत्रकार या ठेकेदार,, या राजनैतिक पार्टियां सभी जगह आप को कलियुगी विभीषण आसानी से देखने को मिल जाते होंगे,,, क्यों कि संसार में रावण और राम,, सत्य और असत्य, हिंसा और अहिंसा, रात और दिन,, हनुमान,, भरत जेसे दोस्त और भाई,, साथ ही विभीषण जैसे भी उपलब्ध मिलते रहे हैं और मिलेंगे,,
लेकिन परिणाम,,,,? इतिहास से वर्तमान समय तक विश्व के किसी भी देश में किसी भी मां ने अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखा क्यों,,,? जब विभीषण ने सत्य का साथ दिया तो फिर कान्हा, कन्हैया,, राम,, सुदामा, आदि नाम तो भारतीय माताएं अपने बच्चों के रख देती हैं लेकिन विभीषण नहीं रखतीं,,
ध्यान दें,,, एक चींटी के शव को ले जाते हुए आपने तमाम चीटियों को देखा होगा,, क्या कभी सोचा आपने ऐसा क्यों,,,? चीटियां दिमाग नहीं रखतीं लेकिन अपनी समाज के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं,, यह बात प्रकृति हमको बताती है हमने यानी की मानव समाज ने जबसे दुनियां बनी है तभी से प्रकृति से सीखा है,, प्रकृति हमारी प्रथम गुरू है,,
हमारे देश में एक दूसरे को आगे बढ़ते हुए देख आपस में उनके खिलाफ कूटनीति रची जाती है जो अपनी खुद की दम पर जीवन में कामयाबी हासिल करते हैं,, यह बात और है ,,कि चक्रव्यूह रचने वाले अपने ही होते हैं लेकिन,, अभिमन्यु को इतिहास आज भी भुला नहीं सका,, कभी खुद गलत होकर सत्य पर प्रहार मत करना वरना इतिहास ऐसे तमाम प्रमाणों से भरा पड़ा है,, जिनका समूल विनाश हुआ है,, चक्र व्यूह की रचना करने वाले सभी लोग युद्ध के मैदान में मृत पड़े थे,, यह एक अकाट्य सत्य है,, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता,, अंग्रेजो के कार्यकाल में भी भारत देश के अंदर राजाओं के खास लोगों ने ही फिरंगियों द्वारा राजा बना देने के लालच में गद्दारियां की,, राजाओं पर आक्रमण हुए और अपनो की गद्दारी के कारण वे मारे गए,, लेकिन जब उन गद्दारों ने अंग्रेजों से कहा कि आपने जो वायदा किया था उसे पूरा करें,, तो जानते हो क्या जवाब मिला ,,,,? अंग्रेजो ने कहा कि जिनसे तुम्हारा परिवार जुड़ा है तुम उनके नहीं हुए तो फिर किसके हो सकते हो,, और उन गद्दारों को तोप के आगे बांध कर गोले से उड़ा दिया,, कास यह काम रावण ने किया होता तो एक भाई की गरिमा कलंकित नहीं होती,, मुहावरा नहीं होता कि,, घर का भेदी लंका ढाए,,,
चंद शब्द ही काफी हैं समझदारो के लिए और विश्व का संपूर्ण ज्ञान भी कम है वेवकूफों को समझाने के लिए,,
सत्य लेकिन कड़ुआ,, मनुष्य का नियंत्रण अपनी अगली सांस पर भी नहीं है,, बिना ईश्वर की मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता,, इसलिए फालतू कूट नीतियों के चक्कर में न पड़े,, आप अपनें कर्म पर ध्यान दें तो ज्यादा बेहतर होगा,, याद रखें कि आप छुप कर भी
भी कोइ भी अपराध कर रहे हैं तो आप को ईश्वर देख रहा है,, सत्य मेव जयते,, अंत में सत्य की ही विजय सुनिश्चित है,, सत्य कभी भी पराजित नहीं हुआ ना होगा,,,
खुद को इक इंशान ही रहने दो बहुत ज्यादा बड़ा समझने की भूल के परिणाम ईश्वर खुद ही देता है,,
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