राष्ट्र के लिए कलंक है पीत पत्रकारिता,,सत्य पर अडिग रहने का नाम है पत्रकारिता,,। स.संपादक शिवाकांत पाठक।

 


( पीत पत्रकारिता समाज एवम राष्ट्र के लिए अनुपयोगी सिद्ध होती है )


( एक दिए को अभिमान था कि मै स्वयं में इतना प्रकाशित हूं कि कमरे का अन्धकार मिटा दिया मैने,,,, उसने जब अपने नीचे झांक कर देखा तो दंग रह गया,, अंधकार तो उसका अपना ही अस्तित्व था जो कि उसके नीचे ही कायम था )


यदि हम बात भारत देश की करते हैं तो पत्रकारिता क्षेत्र को लेकर हमारे देश का प्राचीन इतिहास बताता है कि इस पवित्र निस्वार्थ राष्ट्र एवम समाज सेवी कार्य की शुरुआत देवर्षि नारद ने की,, अब वर्तमान में भले ही स्वयं को कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान समझने की भूल करने वाले लोग नारद जी की बुद्धिमत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कह सकते हैं कि उनके पास कोइ भी डिग्री नहीं थी,, वे तो फर्जी थे,, और हम हैं असली पत्रकार,, हमारे शिवा दुनियां में कोइ भी बुद्धिमान हो ही नहीं सकता,, लेकिन शायद सत्य यहीं तक सीमित नहीं रह सकता,, क्यों कि सत्य के विस्तार क्षेत्र का अध्यन करने हेतु सत्य का अनुसरण करने वाला चाहिए,, आइए  आज एक बार जरूर चर्चा करते हैं कि सत्य क्या है,, जो हम देखते हैं,, या हम जो भी जागृत अवस्था में देखते हैं वह सच है या फिर स्वप्न में देखते हैं वह सच है जो भी करतें हैं क्या वह सच है,, नहीं,,, तो फिर सच क्या है ,,,,? ईश्वर और उसकी विराट सत्ता का प्रत्येक कण कण सत्य का अनूठा और जीता जागता उदाहरण  आपके सामने है,, इस संसार की कोइभी वस्तु को छुए बिना विष्व का कोइ भी वैज्ञानिक कोइ भी किसी भी प्रकार का अविष्कार नहीं कर सकता यह एक अकाट्य और ध्रुव सत्य है,, सत्य स्वयं में प्रमाणित होता है,, सत्य को प्रमाण की कोइ भी अवश्यकता नहीं होती,, क्या ईश्वर है इस बात का आपको प्रमाण चाहिए,,,प्रमाण अज्ञानता के गहन अंधकार में डूबे हुए लोगो की आवश्यकता होती है,, गलत कौन है सही कौन है,, और हम कितना गलत हैं इस बात का निर्णय स्वयं प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा उसी समय कर देती है जब वह व्यक्ति सही या फिर गलत कार्य को अंजाम देता है यही सत्य है,, कर्मो का परिणाम कितना भी चालाक, या धनवान,, या खुद को बुद्धिमान समझने वाला कितना भी पावर फुल ही क्यों ना हो लेकिन भुगतना पड़ेगा,, यह हमारे अपने अनुभव हैं जिन्हे लेखनी द्वारा साझा करना आवश्यक है,, एक राजा के सैनिक एक चोर को पकड़ लाए,, उसे मृत्यु दण्ड दिया गया,, फांसी के पूर्व उससे अंतिम इक्षा पूछी गई तो पता है क्या कहा उसने,,? 



उसने कहा कि मेरी अन्तिम इक्षा यही है कि यदि आप पूरी कर सकते हैं तो फिर हमको फांसी पर वही लटकाए जिसने,, कभी भी मन क्रम वचन से चोरी ना की हो,,  आश्चर्य तब हुआ जब देखा कि उस राज्य सभा में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसने चोरी न की हो, फिर कौन चढ़ाता उसे शूली पर क्यों कि चोर तो सभी थे ,,,,बस यही संपूर्ण सत्य है जिसे हम नकारते हुए ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने में पीछे नहीं हटते लेकिन ध्यान रखें कभी भी भूलें नहीं,, कर्म आपको उसी तरह से तलास कर लेंगे जिस तरह सैकड़ों गायों के बीच गाय का बछड़ा अपनी मां को तलास लेता है,, बाकी क्या सत्य है और क्या झूठ यह सब कुछ सभी की आत्माएं जान कर उन्हे अवगत कराने का कार्य सदैव करती हैं,, यही ईश्वरीय विधान इसके आगे किसी का भी जोर नहीं चलता,,,



नारद महाज्ञानी होने के साथ साथ बहुत बड़े तपस्वी भी थे। वह हमेशा चलायमान रहते थे और कहीं भी ठहरते नहीं थे। नारद भगवान श्री विष्णु के परम भक्त हैं, हमेशा नारायण नाम का जप ही उनकी आराधना है। इनकी वीणा महती के नाम से जानी जाती है, वीणा को बजाते हुए हरिगुण गाते हुए वो तीनों लोकों में विचरण करते हुए अपनी भक्ति संगीत से तीनो लोकों को तारते हैं। नारद महर्षि व्यास, महर्षि बाल्मीकि और शुकदेव के भी गुरु हैं। ध्रुव को भक्ति मार्ग का उपदेश भी देवर्षि नारद ने ही दिया था। महर्षि वाल्मीकि को श्री रामायण लिखने की प्रेरणा भी नारद ने ही दी थी। महर्षि व्यास से श्रीमद्भागवत की रचना भी नारद ने ही करवायी थी। देवर्षि नारद द्वारा लिखित भक्तिसूत्र बहुत महत्वपूर्ण है, इसमें भक्ति के रहस्य और सूत्र बताये गए हैं। माता पार्वती और देवाधिदेव महादेव के विवाह में भी नारद की महती भूमिका थी। नारद ने ही उर्वशी का विवाह पुरुरवा के साथ करवाया था। जनश्रुतियो में कहा जाता है कि नारद के श्राप के कारण ही भगवान राम को देवी सीता के वियोग का सामना करना पड़ा था।



भीष्म पितामह श्री कृष्ण से बाणों की सैया पर लेटे हुए पूछते हैं हे मधु सूदन मैने तो कभी भी कोइ भी पाप किसी भी जन्म में नहीं किया फिर इतना अपार कष्ट मुझे क्यों सहना पड़ा,, श्री कृष्ण कहते हैं पितामह यह सत्य है कि आपने कोई भी पाप नहीं किया लेकिन पाप और पुण्य एक गंभीर विषय है जिसका भान नहीं होता,, आप एक श्रेष्ठ योद्धा ही नहीं वल्कि एक श्रेष्ठ पद पर होने के बावजूद पाप और अन्याय के दृष्टा बन कर द्रौपदी के चीर हरण को देखते हुए भी सही निर्णय लेने में असफल रहे यह एक महान पाप की श्रेणी में आता है आप चाहते तो यह अन्याय नहीं होता,,,


आपके जीवन में भी यदि सत्य घटना के अनुभव हैं तो कृपया हमको भेजिए,,,


समाचारों हेतु सम्पर्क करें,,9897145867

Comments

Popular posts from this blog

कैसे बचेगी बेटियां,? नवोदय नगर में दिन दहाड़े प्रेमी ने गला रेत कर कर दी हत्या,! हरिद्वार,!

फुटबॉल ग्राउंड फेज 1 जगजीतपुर कनखल थाना क्षेत्र में घर में घुसकर बदमाशों द्वारा की गई मारपीट,,,!हरिद्वार,!

नवोदय नगर में घटी बहुत ही दुखद घटना!