( आज अपनी लेखनी मैं मां के नाम करता हूं )
मैं दुनियां की सभी माताओं को प्रणाम करता हूं !
आज अपनी लेखनी दुनियां की हर मां के नाम करता हूं!!
मां ममता की मूरत है प्यार की परिभाषा है!
हर बच्चे के लिए मां ही तो अटूट आशा है !!
जीवन का प्रारम्भ मां है तो अंत भी मां है!
मां के बिना सोच कर देखो जीवन ही कहां है!!
मां के चरणों में अर्पित सारा जहान करता हूं!
आज अपनी लेखनी दुनियां की हर मां के नाम करता हूं!!
मां लोरी सुना कर बच्चे को सुलाती है!
गरीब मां बच्चे को खिला कर खुद भूखी सो जाती है!!
एक मां ही तो बच्चे के भविष्य का निर्माण करती है!
उसी के लिए जीती है उसी के लिए मरती है!!
जन्नत है जिसके पैरों में उस मां को सलाम करता हूं!
आज अपनी लेखनी दुनियां की हर मां के नाम करता हूं!!
बेटा पढ़ लिख कर अमीर हो हर मां का अरमान होता है!
हर मां के लिए बेटा ही जहान होता है!!
लेकिन उस पल एक मां की आत्मा फफक कर रोती है।
जब बुढ़ापे में वह वृद्धा आश्रम में होती है!!
मैं अब क्या लिखूं बस यही पर विराम करता हूं!
आज अपनी लेखनी दुनियां की हर मां के नाम करता हूं!!
स्वरचित मौलिक रचना
स.संपादक शिवाकांत पाठक
हरिद्वार उत्तराखंड
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