जो संकल्प यूज नही करना चाहिए उसे ना चाहते हुए भी यूज कर लेते है! मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक! देहरादून !
स. संपादक शिवाकांत पाठक!
श्रेष्ठ और महान लक्ष्य का आधार एकान्त, एकाग्रता और दृढ संकल्प है। एक के अन्त में एकाग्र होकर दृढ संकल्प बने रहना ही हमारी श्रेष्ठ स्थिति है। श्रेष्ठ स्थिति से किसी भी प्रकार की परिस्थिति पर विजय प्राप्त की जा सकती है। श्रेष्ठ स्थिति हमारी स्व की स्थिति है। अन्र्तमुखता की गुफा में बैठ कर स्व स्थिति का अभ्यास किसी भी परिस्थिति को पार लगा सकती है।
सिद्धि प्राप्त करने के लिए स्वयं को सर्वस्य रूप से समर्पण करना होता है। सिद्धि की विधि के दो प्रमुख आधार है, एक एकान्त और एकाग्रता। एकान्त और एकाग्रता की दृष्टि से सिद्धि को प्राप्त कर लेते है। चलते चलते यह संकल्प जरूर उत्पन्न होता है कि मेहनत करते हुए भी सिद्धि प्राप्त क्यो नही होती है। समय के अनुसार सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यो हो जाती है।
इसके पीछे मुख्य कारण लक्ष्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण नही होना है। मेहनत भी यथा शक्ति करते है। इस कारण हम संकल्प रूपी बीज में शक्ति सम्पन्न नही होते है। शक्तिहीन संकल्प के अन्तर्गत हम कहते है कि यह कार्य हो ही जायेगा। वास्तव में यह संकल्प भविष्य से सम्बन्धित है।
लेकिन वर्तमान में दृढ निश्चय और प्रत्यक्ष फल के रस का बल भरा ना होने के कारण हमें वह सिद्धि प्राप्त नही होती है। इसी प्रकार हम अनेक प्रकार के साधारण संकल्प करते है कि समय के अनुरूप यह कार्य हो जायेगा, अभी हम तैयार नही हुये है। इसलिए हम साधारण संकल्प के बीज को डाल देते है, जिससे हम कमजोर बन जाते है। परिणाम स्वरूप जो संकल्प हमें यूज नही करना चाहिए उसे ना चाहते हुए भी यूज कर लेते है। जिसके कारण जो फल हमें प्रत्यक्ष मिलना चाहिए वह हमें भविष्य में मिलता है।
वर्तमान में प्रत्यक्ष फल पाने के लिए संकल्प रूपी बीज को दृढ निश्चय रूपी जल से सिचना होता है। अपने को दृढ निश्चय रूपी संकल्प के जल से पाॅवरफुल बनना होता है। यदि एकाग्रता कम होगी तब दृढ निश्चय में भी कमी होगी। एकान्तवासी की मात्रा कम होने के कारण साधारण संकल्प हमारे शक्तिशाली संकल्प रूपी बीज को कमजोर कर देते है।
Comments
Post a Comment