इम्यूनिटी नहीं सत्कर्मों की एक्टिविटी की जरूरत है वरना ? स. संपादक शिवाकांत पाठक!
मानव जाति के साथ साथ करोड़ों जीव धारियों के उत्पन्न करने के पीछे ईश्वर का कुछ उद्देश्य रहा होगा उद्देश्य जो भी हो लेकिन मानव जाति इस संसार की ही नहीं वल्कि ईश्वर की भी अनुपम विशेष प्रिय है क्यों कि मनुष्य के शरीर में वह तमाम शक्तियां हैं जो सभी में नहीं हैं लेकिन मनुष्य ने उन शक्तियों का कभी भी इस्तेमाल इंसानियत के लिए नहीं किया वल्कि सदैव अपने घर परिवार के लिए किया जबकि ईश्वर ने इस संसार में सभी निर्माण सभी के लिए किए जैसे सूर्य, चंद्रमा, हवा, अग्नि, आकाश, प्रथ्वी व पेड़ पौधे आदि आदि ये सब किसी एक देश या धर्म, या जाति के लिए नहीं बनाए ना ही किसी भी प्रोडेक्शन में यह लिखा कि मेड इन ईश्वर
तोआप समझिए कि यह बात हमको क्या संदेश देना चाहती है जो सारी दुनिया बना कर खुद छुपाए हुए है और तुम हो कि मैं अंबानी , मैं फलाना , मैं ये मैं वो क्यों ? सोचो शरीर से जान निकल जाने के बाद आमीर हो या गरीब होता क्या है क्या अमीरों को आसमान में दफनाया या अंतिम संस्कार किया जाता है या कुछ भी कितना भी पैसा खर्च करने के बाद क्या कोई मरा हुआ व्यक्ति जिंदा हुआ है आज तक तो फिर क्यों मनुष्य अपनी औकात भूल गया जिन वृक्षों के सहारे सांस लेता था उन्हें काटने लगा !
दो साल पांच साल की बचियों के साथ बलात्कार करने लगा
, प्रथ्वी का सीना चीर कर खनन को ही अपनी जीविका बनाने लगा
देश का धन कमीसन के नाम पर लाकर अपनी असीमित इक्षाओं की पूर्ति करने लगा चंद पैसों के लिए विस्वास का खून करने लगा तमाम खाने की चीजों के रहते चमगादड़, सांप, व वन्य जीवों को उदर पूर्ति का साधन बनाने लगा नाजायज तरीके से कमाए धन से ,ए सी, कीमती गाड़ियों आदि से कुदरत को चैलेंज करने लगा गरीबों की मेहनत की कमाई टैक्स के रूप में लेकर विकास कार्यों की आड़ में कमीसन लेकर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने पर गर्व महसूस करने लगा तो फिर इंसानियत को तिलांजलि देकर पशुविक्ता पर आ पहुंचा तो प्रकृति को ही तो विधि कहते हैं जिसके नियम को हम कानून कहते हैं विधि का विधान हमारी सोच से बाहर है
अब प्रकृति ने जब अपना फैसला सुना दिया तो मास्क लगाकर मुंह को छुपाने लगे अपने परिवार के व्यक्ति की लाश को छूने से कतराने लगे अपनी सच्चाई दिखा दी कि तुम्हारा वास्तविक रूप असली चेहरा क्या है
यह है तुम्हारा भोजन
,कल तक तुम जंगली जानवरों पक्षियों को मार कर खाते रहे उनका सैंपिल ले रहे हो कमाल है यार ईश्वर के सामने भी अपना दिमाग चला रहे हो जबकि जान चुके हो कि कोरोना सड़क के किनारे झुगी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को नहीं हुआ ईश्वर की लाठी में कभी भी आवाज नहीं होती व कितनी भी चालाकी के साथ बुरे काम करिए उसके सी सी टीवी कैमरों से बच नहीं सकते आप, सोचिए
हर फैसला ईश्वर का निर्णय होता है फिर भी आदतों से बाज नहीं आ रहा बेबाकुफ इंसान एक बात याद रखना तुम कुछ भी नहीं हो उसकी नजर हर पल हर जगह है बच नहीं सकते आप कुछ भी करके देख लो बस अच्छे काम ही बचा सकते हैं आप को उसके गुस्से से तो फिर सबके लिए जिओ अपने लिए नहीं! औरो के लिए जिओ क्यों कि" क्या मार सकेगी मौत उसे औरों के लिए जो जीता है!मिलता है जहां का प्यार उसे , औरों के जो आंसू पीता है!!
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