✍️जीवन हमारा एक समाचार बन गया✍️
जनता की समस्यायों का अंबार बन गया!
उन सब के लिए फिर नया अख़बार बन गया!!
सबके लिए लिखता रहा पर याद ना रहा!
जीवन हमारा एक समाचार बन गया!!
दुख दर्द सभी का लिखा अपना ना लिख सका!
लिखना ही सिर्फ बस मेरा आधार बन गया!!
दीपक को लिख के हमने ही सूरज बना दिया!
मैंने लिखा तो आदमी सरकार बन गया!!
बेघर थे कई लोग तो उन पर भी लिख दिया!
लिखता ही रहा घर मेरा संसार बन गया!!
जो लूटते थे दुनियां को उन पर भी लिख दिया!
वो कहने लगे तेरा ये व्यापार बन गया!!
इस लेखनी का दर्द बयां किससे मैं करूं!
मेरे लिए तो दर्द भी त्योहार बन गया!!
जनता की समस्यायों का अंबार बन गया !
उन सबके लिए फिर नया अख़बार बन गया !!
रचना= स. संपादक शिवाकांत पाठक वी एस इन्डिया न्यूज चैनल दैनिक साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त
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