कड़ुआ सच,,अंधकार से प्रकाश तक जाना ही आत्म ज्ञान है ! शिवाकांत पाठक ( समाचार संपादक)
आपकी पहचान आपके नाम से है जब भी कोई आपको याद करेगा तो आपका नाम उसके विचारों में होगा उसकी जुबान पर होगा तभी तो आपको बुला सकता है ,, और आपने भी यही मान लिया है कि आप एक नाम हैं,, यदि नहीं माना तो फिर आप बताएं की वास्तव में आप कौन हैं क्या आप जानते हैं खुद को ?????? नहीं ,,
बस स्वयं को जानना ही आत्म ज्ञान है , आप सोए हुए हैं आप कहते हैं कि मेरी जमीन, मेरा मकान, मेरे बच्चे , मेरी पत्नी, मेरी गाड़ी, मेरा बंगला लेकिन कौन कहता है ? आप या फिर कोई और ? आपकी गाड़ी आपकी है आप गाड़ी नहीं , आपका शरीर आपका है आप शरीर नहीं तो आप कौन हैं ,,,?
अपने देखा होगा कि रात्रि में अंधकार होता है लेकिन अंधकार का कोई अस्तिव नहीं है आप प्रकाश कर दें अंधकार नहीं दिखेगा लेकिन अंधकार में हम रास्ता भटक जाते हैं, खाई में गिर जाते हैं कुछ भी हो सकता है लेकिन प्रकाश की अनुपस्थित ही अंधकार है अंधेरे का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, जहां प्रकाश नहीं है वहां अंधेरा है ,, अंधकार कोई वस्तु नहीं है हमारा अज्ञान है जैसे अज्ञान कोई वस्तु नहीं है ज्ञान का अभाव ही अज्ञान है ,, ज्ञान है हमारी आत्मा, और हम आत्म अज्ञान से पूरी तरह से भरे हुए हैं , और अर्जुन से श्री कृष्ण कहते हैं कि संसार माया से ढका हुआ है मतलब आत्मा , आत्म अज्ञान से ढकी हुई है ,, श्री कृष्ण कहते हैं कि तू सभी धर्मो को छोड़ कर मेरी शरण में आजा मतलब आत्मा स्वयं कृष्ण है आत्मा को पहचान ले उनका कहना यही है लोगो ने समझा कि कृष्ण भगवान किसी धर्म में आने की बात कह रहे हैं इसीलिए सभी भटक रहे हैं स्वधर्म को हम समझे ही नहीं स्वधर्म आत्मा है उसका साक्षात्कार ही स्वधर्म है , कृष्ण कहते हैं कि पर धर्म भयावह है जिसको लोग समझते हैं कि वैष्णव धर्म के अलावा अन्य धर्म भयावह हैं ऐसा नहीं है,, पर धर्म का मतलब देह धर्म से है शरीर का धर्म और आत्मा का धर्म ही स्वधर्म है आत्मा ही सच्चा स्वरूप है तुम्हारा है जिसे श्री कृष्ण कहते हैं कि इसे कोई भी मार नहीं सकता, जला नहीं सकता, शस्त्र काट नहीं सकते जब वह शरीर से निकल जाती है तो आपका कोई भी अस्तित्व नहीं रहता,, जीवन समाप्त होने के बाद आपको सरी दुनियां आपके नाम से पुकारे तो भी आप सामने नहीं आ सकते क्यों कि आत्मा जब तक शरीर में है तभी तक आप का अस्तित्व है इसलिए आत्मा ही श्री कृष्ण हैं सभी को छोड़ कर आत्मा की शरण में आ जाओ यही जीवन की सार्थकता है वरना तरह तरह की योनियों में जन्म लेने के लिए आपको विवश होना पड़ेगा तरह तरह के कष्ट भोगने होंगे , इसलिए स्वयं को पहचानो आत्म ज्ञान को प्राप्त करो ,, जो कि बाजारों में नहीं मिलेगा, धन से भी नहीं मिल सकता सिर्फ अध्यात्म वादी व्यक्ति ही आपकी अज्ञानता को समाप्त कर सकता है!🙏
लेखक
समाचार संपादक शिवाकांत पाठक हरिद्वार उत्तराखंड
दैनिक साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त उत्तराखंड सरकार से विज्ञापन हेतु अधिकृत
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