अंधकार पर प्रकाश की विजय दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं ! हरिद्वार !

 






संपादक शिवाकांत पाठक!




सचिन त्यागी ने भी दी बधाइयां 





रिपोर्ट मुकेश राणा,,,रोशनी की नन्ही संतानों का उत्सव है दीपावली। जब सूर्य-चंद्र-तारे अस्त हो जाते हैं तो मनुष्य अंधेरे में नन्हें दीपों के सहारे ही बचा रहता है। वैदिक ऋषि का वह अलौकिक बोध तमसो मा ज्योर्तिगमय हमें सदा अंधेरे से लड़ने की प्रेरणा देता है। अंधेरे के विरुद्ध हमारी लड़ाई सृष्टि की शुरुआत से है। इस लड़ाई में छोटा-सा दीपक सूर्य और चंद्रमा का सच्चा प्रतिनिधि बनकर हमारे जीवन में देवोपम भूमिका निभाता है। इसी कारण वेद-शास्त्र इसे दीप देवता कहते हैं - भो दीप! देवरूपस्त्वम्।



चारों ओर फैले अंधेरे ने मानव-मन को इतना कलुषित किया है कि वहां किसी दिव्यता, सुंदरता और सौम्यता के अस्तित्व की कोई गुंजाइश नहीं बचती। परंतु अद्भुत है अंधकार को चीरकर स्वर्ण-आभा फैलाती प्रकाश की प्राणशक्ति और चरम सुंदर है इस उजाले को फैलाते दीपक की जिजीविषा।



मानव के तन-मन में छाए अज्ञान को मिटाने के लिए भयंकर अंधेरे के बीच प्रकाश की शक्तिमान किरण सगर्व मस्तक उठाए फूट पड़ी और उस दिये की चमचमाती लौ में प्रकाश ने अपने चमकीले मुंह को प्रकट किया। प्रकाश का मनमोहक स्वर्ण मुख! रूई के शरीर वाले दिये की बाती में प्रवाहित तेल बन गया ऐसा सुंदर चेहरा, जो अपनी चेतना-प्रभा से चहुं ओर ज्ञान-प्रकाश की रोशनी फैला रहा है।



एक नन्हे-से दीपक ने आसपास के सारे नरक को पराजित कर दिया। इस नन्हें दीपक से अज्ञान-अंधकार सदा के लिए हार गए। जरा गौर से देखिए, यह दीप नहीं नवजात शिशु का सुकोमल चेहरा है। सिंधुजा-लक्ष्मी का दैदीप्यमान वरदहस्त है दीप। दयालु परमात्मा का करुणामय वरदान है दीप। आश्चर्य होता है कि कार्तिक मास की इस काली रात ऐसा कौन-सा पुण्य प्रकट हुआ कि हजारों साल पहले सृष्टि की चेतना को स्फुरित करने के लिए एक रामरूपी दीपक ने अंधेरे की लंका को मिटाने के लिए दीपावली की रात में अवतार लिया और यह चंद्रहीन रात्रि भी प्रभावती हो उठी।


यह मिट्टी, रूई और तेल का संयोग नहीं, वरन् समुद्र की बेटी लक्ष्मी का उज्ज्वल मुख है, जो सुंदर दीप के रूप में जन्मा है। आकाश से धरती पर उतरा दीप सूर्य-चंद्र-नक्षत्रों का लघु प्रतिमान है। यह दीप रोशनी की प्रजा-संतान है। ईरानी शब्द रोशनी का मूल संस्कृत रूप रोचना है, जिसका अर्थ द्युति और दीप्ति है। लक्ष्मी का एक नाम ही रोचनावती है। इस रोचना से जुड़ने के नाते ही दीप भारतीय संस्कृति के मूल में स्थित यज्ञ संस्कृति के लघु प्रतीक हैं।



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