जीवन में न्याय न मिलने पर क्या अधर्म का मार्ग अपनाना चाहिए? श्री कृष्ण !

 



संपादक शिवाकांत पाठक !



कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्यज दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?

द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।

परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा।- क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय ही था ।

केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था ।

द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया ।

माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए।

जो भी मुझे प्राप्त हुआ है, दुर्योधन के दातृत्व से ही हुआ है ।

तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ?

कृष्ण ने उत्तर दिया:

कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ ।

जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए बैठा था।

जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता से दूर किया गया ।

तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता । मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला और खड़ा होकर चल भी नहीं पाया उसके पहले ही कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े ?

कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। लोगों से ताने ही मिले कि उनकी समस्याओं का कारण मैं हूँ। तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की तारीफ कर रहे थे, मुझे उस उम्र में कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी। जब मैं सोलह वर्षों का हुआ तब कहीं जाकर ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा ।

तुम अपनी पसंद की कन्या से विवाह कर सके ।

जिस कन्या से मैंने प्रेम किया वो मुझे नहीं मिली और उनसे विवाह करने पड़े जिन्हें मेरी चाहत थी मुझे उनकी नहीं ,,

मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसाना पड़ा, उन्हें जरासंध से बचाने के लिए । रण से पलायन के कारण मुझे भीरु भी कहा गया ।

कल अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा ।

धर्मराज अगर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा ?

मुझे केवल युद्ध और युद्ध से निर्माण हुई समस्याओं के लिए दोष दिया जाएगा।

एक बात का स्मरण रहे कर्ण -

हर किसी को जिंदगी चुनौतियाँ देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है ।

लेकिन सत्य धर्म क्या है यह तुम जानते हो ।

कोई बात नहीं अगर कितना ही अपमान हो, जो हमारा अधिकार है वो हमें ना मिल पाये...महत्व इस बात का है कि तुम उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हो ।

रोना धोना बंद करो कर्ण, जिंदगी न्याय नहीं करती इसका मतलब यह नहीं होता कि तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति है ।

श्रीकृष्ण से हमे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।


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