चुनावी तैयारियों के मंसूबे लेकर वर्षाती मेंढ़कों की भांति टर टराते समाजसेवी! नवोदय नगर हरीद्वार!
संपादक शिवाकांत पाठक!
समाज सेवा वास्तव में एक बेहद महत्वपूर्ण कार्य होता है लेकिन आज वर्तमान समय पर यह केवल महज ढोंग बनकर रह गई है क्यों कि अवसर वादिता के चलते अब तमाम ऐसे लोग जिन्हें कभी भी समाज से कोई भी सरोकार नहीं रहा वे भी सज धज कर मंच पर खड़े होकर खुद को समाज सेवी कहलाने में पीछे नहीं रहते वे लोग जो सिर्फ अपने व अपने परिवार के लिए जीते हैं वही अब जनता के सामने फोटो में नजर आते हैं और जनता जो कि वर्षों से सब कुछ देखती आ रही है उसके बावजूद गलत फहमी का शिकार हो जाती है यह सृष्टि का नियम है सिद्धांत है कि जनता यदि बुद्धिजीवी हो जाए तो नाटक की भूमिका समाप्त हो जाती है और जनता कभी भी एक मत नहीं हो सकी यही इतिहास बताता है अभिमन्यु अपने ही परिजनों की चाल का शिकार हुआ था उसके साथ धोखा किया गया था अकेले कब तक लड़ता उसे चारो ओर से अपनों ने ही घेर रखा था अंत में पिता श्री कह कर चीखने के बाद उसे अपनों ने ही बेरहमी से मार डाला यह सच सभी को मालूम है या नहीं?
तो फिर नवोदय नगर में कोरोना का भयावह संकट हो या लाइट गुम हो जाए या किसी गौ माता को तकलीफ हो या फिर सड़क, नाली, कूड़े कचरे की समस्या हो तब नवोदय नगर की जनता किसे पुकारती है यह सवाल मैं सिर्फ जनता से पूछ रहा हूं इसलिए यदि संभव हो तो जवाब सिर्फ जनता दे क्यों कि यहां पर बात राजनीति की नहीं बल्कि मानवीयता के नाते समाज की निस्वार्थ सेवा भाव से जुड़ी सेवा से है ? और जब वही समाज सेवी आप सभी के दरवाजे पर एक बार आपका विचार, मत , वोट मांगने गया था तब आप सभी यानी जनता ने प्रतियोत्तर में उसे क्या दिया था ? आप सभी जानते हैं कि दानवीर कर्ण पांडव था लेकिन वह पांडव होकर भी अपमान झेलता रहा सिर्फ समाज के कारण ,,
युद्ध में अर्जुन के सारथी बनने वाले श्री कृष्ण भी कर्ण की वीरता की सराहना करते हैं आखिर क्यों ?? क्यों कि श्री कृष्ण जानते थे दानवीर कर्ण की वीरता को अर्जुन नहीं जानते थे ,,
साथ ही मां जानकी की अग्नि परीक्षा हो चुकी थी इसके बावजूद उन्हें जंगलों में गर्भावस्था के दौरान दर दर भटकना पड़ा था सिर्फ समाज के कारण ,,,
तो फिर आप खुद ही अपने आप में आत्म मंथन करें और सोचे समझे कि आपने क्या गलत और क्या सही फैसला किया वरना आपके फैसले एक दिन आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप साबित होंगे , मतलब समाज की बात मानकर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम ने मां जानकी को त्याग दिया था और परिणाम ?????
राम और लवकुश युद्ध 🙏🙏 मैं सिर्फ और सिर्फ एक कलमकार हूं मेरे पास कोई पावर नहीं है सुरक्षा सिर्फ ईश्वर के अस्तित्व पर निर्भर है बस जस क्षण रघुपति जस करें तस क्षण तस मत होय ,,, अर्थात ईश्वर जब जिसकी जैसी बुद्धि कर देता वैसी ही उसकी बुद्धि कार्य करती है इसलिए लिखवा ईश्वर रहा है लिखने वाला भी उसी का अनुपम उपहार स्वरूप कोई मनुष्य होगा ???? निवेदन ,,, पाप अन्याय कितना भी आकर्षक या फायदे मंद हो उसका साथ न दें आज सत्य ही ईश्वर का स्वरूप होता है,,,,
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