क्या आप जानते हैं,,जीवन और उसकी वास्तविकता का रहस्य !

 



संपादक शिवाकांत पाठक!


हम जब जीवित हैं वही जीवन है लेकिन हमारे जीवन का मूल उद्देश्य क्या है हमको जीवन मिला है और हमारा शरीर एक अनोखी कलाकृति है जो कि यह स्पष्ट करती है कि हमको बनाने वाला जरूर कोई विराट शक्ति से सम्पन्न होगा , क्यों कि यहां पर हम यदि गौर करें तो क्या वास्तव हमारे जीवन का मूल उद्देश्य धन कमाना है क्या हमको जीवन इसी लिए विधाता ने दिया है या फिर रात दिन भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए हम दौड़ते रहे और अंत तो सभी का सुनिश्चित है वह है मौत जिसे ना तो दुनियां का कोई भी स्वदेशी या विदेशी डाक्टर टाल सकता है ना ही आज तक सुनने में आया है ,, फिर भी हम अन्याय, अत्याचार से बेईमानी या अधर्म से तब तक इतना अपार धन एकत्रित करते हैं कि जब तक हमारे प्राण ना निकल जाएं , और हमको मृत्यु से कोई भी बचा नहीं पाया ,, तो यहां पर सवाल उठता है कि जब कुछ भी लेकर जाने की व्यवस्था नहीं है तो हम इतना सब कुछ गलत तरीके से इकट्ठा क्यों करते हैं ,, और जो हम साथ ले जा सकते हैं वह है अध्यात्म यानी खुद को जानना ,, लेकिन हमारे पास समय नहीं है,, पूर्वजों की बातों को हम मानना नहीं चाहते क्यों कि रहीम दास जी लिखते हैं कि, रहिमन इतना दीजिए जामै कुटुम्ब समाय,, मैं भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाए ,, यही आवश्यकता है बाकी तो सच यही है कि कठ पुतली के नांच को देखने वाला भ्रमित हो जाता है सोचता है ये कठपुतलियां नाच रही हैं ,, लेकिन यदि पर्दे के पीछे जाकर जिसने देख लिया तो उसका भ्रम टूट जाता है वह सत्य को जान जाता है बस समझने की जरूरत है इस संसार में कठपुतली का ही खेल चल रहा है ,, तुम बस खुद को समझने की कोशिश करो वही अध्यात्म है जो साथ जाएगा अपने आत्म ज्ञान को जगाओ जिसे मृत्यु समाप्त नहीं कर सकती ,, क्यों कि आत्मा सभी में है यह सत्य है,, और हमारे प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख किया गया है कि , सिया राम मय सब जग जानी अर्थात सम्पूर्ण विश्व को प्रभु राम व सीता के रूप में देखने का ज्ञान होना ही अध्यात्म है ,, विश्व के हर कण कण में ईश्वर व्याप्त है तो फिर कोई भी दुश्मन कैसे हो सकता है ,, लेकिन इस बात को जानने के लिए हमको ज्ञान की जरूरत होती है जो स्कूलों में नहीं वल्कि हमारी आत्मा में ही होता है ,, ईश्वर ने मन में सोचा कि,,एको हम बहुस्यामी मैं एक से अनेक हो जाऊं और सोचते ही श्रष्टि का निर्माण हो गया वही ईश्वर तमाम जीवों , प्रथ्वी, सूर्य, चन्द्र, आकाश, वायु, अग्नि के रूप में प्रत्यक्ष दिखने लगा साथ ही प्रबल माया के वसीभूत होने के कारण सभी अपने परिवार, बच्चों, आदि के लिए सांसारिक सुखों के लिए अन्याय अत्याचार करने लगे , और उस परम पिता को भूल गए ,, जबकि अध्यात्म की इसी समदर्शी और समत्व की भावना को योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों में स्थित आत्मा को अपने जैसा देखता है, ऐसा समदर्शी आध्यात्मिक मनुष्य सांसारिक वातावरण से अलग होकर सभी प्राणियों को ईश्वरमय समझने लगता है। ऐसी अवस्था में वह किसी का अहित करने का विचार अपने मन में नहीं ला सकता। संपूर्ण विश्व के प्राणी उसके लिए बंधु बन जाते हैं। अध्यात्म मनुष्य को इसी समत्व की भावना की ओर ले जाता है। हमारी सारी दौड़, सारे प्रयास बाहर के भौतिक जीवन तक ही सीमित हैं। लेकिन अध्यात्म अपने भीतर जाने का मार्ग खोलता है।



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