सच नहीं झूठ पर आधारित होती जा रही है फर्जी पत्रकारिता!

 




स. संपादक शिवाकांत पाठक उत्तराखंड!





खबर सच है या नहीं खबर प्रकाशित करवाने के पीछे सच्चाई क्या कोई सरोकार नहीं बस खर्च पानी को ही प्रमुखता देते हुए आज कि पत्रकारिता तमाम सवालों के दायरे में है क्यों कि कीमत मिलना चाहिए लेखनी कि जरूरत ही नहीं बस बोलकर टाइप कर लेंगे कोरोना महामारी के चलते लोगों को अच्छा खासा व्यपार मिला तमाम समितियों ने टास्क फ़ोर्स के नाम से लोगों को भ्रमित करने का कार्य भी किया जब कि सच्चाई को खोजने का प्रयास करना आज पत्रकार के लिए फिजूल साबित हुआ! पत्रकारिता एक आइना है जो सच होता है वही दिखाने का काम मीडिया यानी पत्रकार का है लेकिन जब आइना ही धुंधला हो जाए तब सच कैसे दिखेगा , पत्रकारिता पर शासन प्रशासन को चाहिए की समय देकर फर्जी व बिकाऊ पन को विराम देने के लिए उपाय सोचें,, न्यूज दो खर्च दो तुरंत प्रकाशित होगी यहां दूसरी ओर प्रशासन व सूचना विभाग ने भी अनदेखी कर अपनी मूक सहमति प्रदान कर दी जिसका परिणाम पता है आपको क्या हुआ अवैध कार्यों में इजाफा हुआ तमाम माफिया लोग मीडिया को मिलाकर करोड़ों का खेल खेलने लगे अधिकारी कान में तेल डाल कर रूई लगा कर बैठ गए  अब आप सोचिए की जब कोई भी व्यक्ति यू ट्यूब में खबरे डाल कर आई कार्ड बनाएं तो क्या वह सही है ? यहां एक बात स्पष्ट कर देता हूं की जब पत्रकारिता की शुरुआत हुई तब कोई भी मार्स कम्युनिकेशन कोर्स नहीं था और तब बिकाऊ मीडिया का ठप्पा भी नहीं लगा क्यों कि पत्रकारिता मनुष्य के विवेक व बुद्धि  पर आधारित होती है जरुरी नहीं है कि पढ़ा लिखा व्यक्ति बुद्धिमान हो !

पत्रकारिता पर आज लोग उंगली उठा रहे हैं आज सैकड़ों की तादाद में कुकरमुत्तो की तरह पत्रकारों का भी कोई वजूद नहीं रहा सुबह से शाम तक केवल पत्रकारिता के नाम पर अवैध कार्यों में लिप्त लोगों से ही अपनी आर्थिक पूर्ति करना उनकी दिन चर्या बन चुकी है 



 भारत में पहला अखबार 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी के संपादकीय के तहत प्रसारित किया गया था , जिसका नाम हिकी के बंगाल राजपत्र था । 30 मई , 1826 को उदंत माईंड ( द राइजिंग सन ) , भारत में प्रकाशित पहला हिंदी - भाषी समाचार पत्र , कलकत्ता ( अब कोलकाता ) से शुरू हुआ , जिसे प्रत्येक मंगलवार को पं । भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता के जनक व समाजसेवी , ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई सन् 1772 ई में बंगाल के एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । राममोहन जी के पूर्वजों ने बंगाल के नवाबों के यहां उच्च पद पर कार्य किया किन्तु उनके अभद्र व्यवहार के कारण पद छोड़ दिया । वे लोग वैष्णव संप्रदाय के थे । माता शैवमत की थीं । राममोहन राय बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा बांग्ला भाषा में हुई । आपके | पिता फारसी भाषा के विद्वान थे । अत : फारसी का ज्ञान अपने पिता के माध्यम से प्राप्त किया । साथ ही अरबी व अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया । मां के अनुरोध पर संस्कृत सीखी । इस प्रकार लगभग सात प्रकार की देशी व विदेशी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया ।

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