आखिर क्या होता है  पितृ पक्ष का महत्व।  योगी अश्विनी ध्यान आश्रम!


संपादक शिवाकांत पाठक!



पितृ पक्ष वर्ष के उस समय का प्रतीक है जब हमारे पूर्वज हमसे मिलने आते हैं। इन दिनों आप देखेंगे कि आपको डरावने बुरे सपने आ रहे हैं या छाया बिंब दिख रहे हैं। अत्यधिक गुस्सा आ रहा है या झगड़ों में पड़ रहे हैं। यह सब इसलिए है क्योंकि आपके पितृ आसपास हैं ।   आपके लिए यह सब माहौल रहे हैं।  वैदिक भारतीय संस्कृति में श्राद्ध का संस्कार किया जाता रहा है। जबकि प्राचीन मिस्रवासियों ने अपनी अंतिम यात्रा के लिए पिरामिडों में शरीर और भोजन और आपूर्ति संग्रहीत करते थे। प्राचीन यूनानी मृतक की जीभ के नीचे सिक्के डाल उन्हें दफन कर देते थे। उनका मानना था कि वहां से उन्हें नीचे के लोकों में ले जाया जाएगा। कुछ पूर्वी संस्कृतियों में यह माना जाता है कि पूर्वज समुद्र पार करके आते हैं। इसलिए वे इस अवसर को मनाने के लिए पार्टियां करते थे। 


इन सभी परंपराओं से पता चलता है कि हमारे पूर्वज जीवन और जन्म की निरंतरता और एक जन्म से दूसरे जन्म में प्रवेश के दौरान एक आत्मा की यात्रा से अच्छी तरह वाकिफ थे। एक बार जीव शरीर छोड़ देता है, जिसे देहंत कहा जाता है।  यदि उसके पास समुचित कर्म नहीं हैं, तो उसे दूसरा शरीर नहीं मिलता है। जब शरीर प्रदान नहीं किया जाता है, तो आत्मा अपने पिछले जन्म (संपत्ति, धन, संबंधों) में जमा की गई सभी चीजों के प्रति आकर्षित हो वहां रहने के लिए अपने पहले शरीर में प्रवेश करती है और अक्सर भूत का रूप लेती है ।  यदि आप ध्यान दें तो पितृ पक्ष का आना, अमावस्या के निकट आने से मेल खाता है।  अमावस्या की रात अंधकार की घोतक है। यह उन आत्माओं के अंदर के अंधेरे का प्रतिबिंब है। यहाँ अन्धकार का अर्थ है अविद्या जो ज्ञान के प्रकाश से दूर हो जाती है। पितृ अंधकार के आयाम में हैं क्योंकि उन्होंने अंधकार को चुना।  जीवन भर उन्होंने अपने लिए या अपने बच्चों के लिए जमा किया। जो आज आपके बच्चे हैं, क्या आप जानते हैं कि इससे पहले वे कौन थे? कुछ साल पहले फारुकनगर में एक मामला सामने आया था, जहां एक छोटे बच्चे ने खुलासा किया कि उसके पिता ने उसकी हत्या कर दी है। उसने उसी घर में पुनर्जन्म लिया, और अब वही आदमी अपना धन और संपत्ति उसके लिए छोड़ रहा होगा। ऐसे कई मामले हैं, और फिर भी ज्यादातर लोग इस पर विश्वास करने से इनकार करते हैं। यही माया है, यही अँधेरा है। पितृ पक्ष के दिन जब हम पितरों के नाम पर गायों को भोजन कराते हैं तो पितरों की तृप्ति हो जाती है। उनके लिए यज्ञ करें। उन्हें बस इतना ही चाहिए।



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