शांत व्यक्ति डरपोक नहीं वल्कि स्थित प्रज्ञ कहलाता है! श्री मद भगवत गीता!
संपादक शिवाकांत पाठक!
स्थिता प्रज्ञा ज्ञानं यस्य स स्थितप्रज्ञः। भाष्यतेऽनयेति भाषा लक्षणमित्यर्थः। उक्तं लक्षणमनुवदति लक्षणानन्तरं पृच्छामीति ज्ञापयितुम्।समाधिस्थस्येति। कं ब्रह्माणं ईशं रुद्रं च वर्तयतीति केशवः। तथाहि निरुक्तिः कृता हरिवंशेषु रुद्रेण कैलासयात्रायाम् हिरण्यगर्भः कः प्रोक्त ईशः शङ्कर एव च। सृष्ट्यादिना वर्तयति तौ यतः केशवो भवान् इतिवचनान्तराच्च। किमासीत किं प्रत्यासीत। न चार्जुनो न जानाति तल्लक्षणादिकम्।जानन्ति पूर्वराजानो देवर्षयस्तथैव च। तथाहि धर्मान्पृच्छन्ति वार्तायै गुह्यवित्तये। न ते गुह्याः प्रतीयन्ते पुराणेष्वल्पबुद्धिनाम् इति वचनात्।
कोई भी पति जब अपनी पत्नी की गलतियों पर उसे नहीं डांटता... इसका मतलब यह नहीं है कि वो डरपोक है ,,,
इसका सीधा सा अर्थ है कि उस महापुरुष ने बवाल से बचना सीख लिया है और उस व्यक्ति ने शांति से जीवन जीने का मार्ग खोज लिया है । गृहस्थ रहते हुए भी वह पुरुष मोक्ष को प्राप्त हो जाता है ।
इसे गीता में स्थितप्रज्ञ कहा गया है।
जैन धर्म मे कैवल्य कहा गया है।
बौद्ध धर्म मे जीवन मुक्ति कहा गया है!
प्रश्नके कारणको पाकर समाधिप्रज्ञाको प्राप्त हुए पुरुषके लक्षण जाननेकी इच्छासे अर्जुन बोला
जिसकी बुद्धि इस प्रकार प्रतिष्ठित हो गयी है कि मैं परब्रह्म परमात्मा ही हूँ वह स्थितप्रज्ञ है। हे केशव ऐसे समाधिमें स्थित हुए स्थितप्रज्ञ पुरुषकी क्या भाषा होती है यानी वह अन्य पुरुषोंद्वारा किस प्रकार किन लक्षणोंसे बतलाया जाता है
तथा वह स्थितप्रज्ञ पुरुष स्वयं किस तरह बोलता है कैसे बैठता है और कैसे चलता है अर्थात् उसका बैठना चलना किस तरहका होता है
इस प्रकार इस श्लोकसे अर्जुन स्थितप्रज्ञ पुरुषके लक्षण पूछता है।
जो पहलेसे ही कर्मोंको त्यागकर ज्ञाननिष्ठामें स्थित है और जो कर्मयोगसे ( ज्ञाननिष्ठाको प्राप्त हुआ है ) उन दोनों प्रकारके स्थितप्रज्ञोंके लक्षण और साधन प्रजहाति इत्यादि श्लोकसे लेकर अध्यायकी समाप्तिपर्यन्त कहे जाते हैं।
अध्यात्मशास्त्रमें सभी जगह कृतार्थ पुरुषके जो लक्षण होते हैं वे ही यत्नद्वारा साध्य होनेके कारण ( दूसरोंके लिये ) साधनरूपसे उपदेश किये जाते हैं। जो यत्नसाध्य साधन होते हैं वे ही ( सिद्ध पुरुषके स्वाभाविक ) लक्षण होते हैं।
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