नफ़रत की दुनियां
।।नफरत की दुनिया में जब पड़े मेरे कदम !!
लोगों के झूठे जज्बातों में उलझ गए हम !!
इस जमाने में ना ज्यादा रोये ना कम !!
बस दिल बेचैन रहने लगा आंखें रही नम !
जिंदगी की राहों से भटका मंजिल का नहीं ठिकाना !!
हर मोड़ पर जालिम गमों का साया दे गया जमाना !
अच्छा बनने की कोशिशें की बुनता रहा तानाबाना !!
रंजीत के गमों का ना रहा कहीं आशियाना !
गंगा के तीर नहाने गया डुबो दिया जमाने ने !!
कैसे जुल्म सहे बदनाम किया लोगों के ताने ने !
बस गमों के दौर में सहारा दिया जाम के मयखाने ने !!
क्या दोष था मेरा जला दिया शमां के परवाने ने !
रात के पहर में नजर आता है भौर का उजियारा !!
जमाना कहता है कम भोजन कम निंद्रा तेरा सहारा !
हमें राहों में पत्थर मिले ठोकरों ने ऐसा मारा !
जुबां खामोश बही अश्कों की जलधारा !!
रचना
रंजीत बर्तवाल
हरिद्वार उत्तराखंड
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