धरम नगरी में नशे का कारोबार कितना सही कितना गलत ?
(आइए विचार करते हैं सच क्या है)
हरीद्वार को धर्म नगरी के साथ साथ भगवान विष्णु का ह्रदय भी कहा जाता है और कहा ही नहीं जाता अपितु है भी शास्त्रों के अनुसार तीर्थो में किया गया पाप सौ गुना अहित कारी होता है तो फिर आप सोचिए कि धर्म नगरी में आप या विदेशी मेहमान जो कि आस्था के साथ आते हैं और यहां पर आप जहां भी खड़े होकर एक बार सच्चे मन से समुंदर से निकली वारुणी मदिरा , मधु का ध्यान करेंगे चिंतन करेगें मनन करने के बाद दस मिनट में आप के आसपास ही उपलब्ध हो जाती है क्यों ?? साथ ही इस धरम नगरी में होटलों या हरि की पौढ़ी के आसपास कौन सा नशा उपलब्ध नहीं है यह बात आप बखूबी जानते हैं ,,तो क्या इस व्यवस्था से हमारी भारतीय संस्कृति पर चार चांद लग जाते हैं या फिर हमको शर्म आना चाहिए,, और यदि हम इस तरह के अवैध गैर कानूनी कामों पर रोक नहीं लगा सकते तो फिर देव भूमि या धरम नगरी जैसे प्राचीन नामों को बदलना होगा ,,यदि आप बात करें नशे की तो नशा प्राचीन काल से हमारे पूर्वज करते आए हैं नशे के कई रूप होते हैं कहीं न कहीं हर व्यक्ति नसे में रहता है, किसी को पद का , तो किसी को धन का, किसी को सत्ता का तो किसी को बल या शक्ति का नशा तो किसी को अपनी होसियारी, काबिलियत का नशा , तभी तो फिल्मी गाने में सुना गया कि, नशे में कौन नहीं है ये बताओ जरा ? देखिए ना आपने सुना होगा कि शराब विष के समान है इसको पीने से कैंसर होता है स्वास्थ्य के लिए हानि कारक है , है न ? आज इस रत्न के बिना देश का विकास असम्भव है यानी हमारा अपना विकास क्यों कि विकास ही विकास का जन्म दाता है जब विकास होता है तो उससे तमाम लोगों का भविष्य तय होता है वो कोइ भी तंत्र हो सिस्टम हो नेता या अधिकारी हों आप भले ही बात कमीशन पर ले जाएं परन्तु मेरे लिखने का उद्देश्य विकास से संबंधित है , समुन्द्र से विष यानी जहर और वारुणी निकली यानी जहर और मदिरा विष का असर तत्काल होना सुनिश्चित था लेकिन मदिरा का उपयोग दवा में भी होना था जैसे बच्चे को सर्दी लग जाए तो देशी शराब की मालिश करते थे हमारे पूर्वज, तो फिर तत्काल प्रभाव तो विष का होना था तो उस विष को भगवान शंकर को दे दिया गया और वे पी भी गए कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई तो तमाम जहरीले वृक्ष उग आए!
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