मैं भ्रटाचार हूं!
मेरा उद्देश्य आप पर शासन करने का है! स. संपादक शिवाकांत पाठक! अंधेरी रात में लाक डाउन के नियमों का उंलघन करते हुए काले रंग का एक सख्स सुनसान सड़क पर दिखा तो मैंने पूछा कि आप कौन महाशय हैं ? मेरा पूछना जायज था महाभयनक कोरोना संकट में न्यूज कवर करके लौट रहा था बस एक नशा था पत्रकारिता का वरना कौन पूछता है हम पत्रकारों को हमारे देश की व्यवस्था ही इस तरह की है की अंधे पीसेगें और कुत्ते खा जाएंगे इस लिए मैंने पूछा तो बढ़ी हुई दाढ़ी व कले काले से दिखने वाले बुजुर्ग ने कहा कि नादान, नासमझ तू अपने आप को पत्रकार कहता है और मुझे नहीं जानता मैं भ्रटाचार हूं मैं सारे संसार का मालिक हूं लेकिन भारत मुझे प्राणों से ज्यादा प्रिय है मेरे पूर्वजों की सौर्य गाथा व पराक्रम का प्रमाण इसी देश में है यह देश किसी समय पर सम्पूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करता था ! व उसने कहा कि तुम जैसे बुद्धिमान पत्रकार भी मुझे नहीं जानते कि मै कौन हूं जब की अंगूठा छाप लोग मेरा स्मरण करते हैं व मालामाल हो जाते हैं ! मैंने पूछा कि आप का रेजिडेंस कहां है तो उसने तपाक से उत्तर दिया मै सभी जगह हूं जो मुझे प्रेम से पुकारता है मैं प्रकट हो जाता हूं मैं परम पिता परमेश्वर की संतान हूं मुझे कोई भी मार नहीं सकता मै अजर अमर हूं विशेष लोगों के अलावा हर व्यक्ति के मन में मेरा निवास है एक दिन मेरा विश्व में राज होगा मेरे परिवार में हैजा , वर्डफ्लू, कालरा आदि हैं कोरोना मेरा पुत्र है मै मनुस्यों को उनके कर्मों का दण्ड देने के लिए पृथ्वी पर आता हूं जब मैंने कहा कि मै तुम्हारे खिलाफ समाचार लिखूंगा तो उसने तुरंत कहा की तुम में से अस्सी प्रतिशत लोग मेरे साथ हैं तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते यह सुन कर मैं चुप रह गया ! क्या कहता मैं जब कमी हमारी ही थी !
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