स्वतंत्रता, जहां नेता व सरकारी महकमा मालामाल और जनता ?
स. संपादक शिवाकांत पाठक! चार स्तंभ यानी चार खंभो पर चल रहा है हमारा संविधान जिसमें कि तीन खंभे मजबूत एक कमजोर है तो व्यवस्था कि इमारत ध्वस्त होगी ही क्योंकि की चौथा खंभा है पत्रकारिता मीडिया जिसे रहने, खाने, सभी जगह जाकर न्यूज कवर करने के लिए खुद व्यवस्था करना पड़ती है सुरक्षा के लिए भी आत्मनिर्भर बनना पड़ता है वहीं जब किसी बड़े पैमाने पर हो रही सरकार की गड़बड़ी पर पत्रकार कलम चलाता है तो फर्जी मुकदमे का शिकार जब बड़े माफिया या गैर कानूनी काम करने वाले पर कलम चलाता है तो फर्जी मुकदमे का शिकार होना पड़ता है जानते हैं क्यों ? क्यों कि सारे गैर कानूनी काम करने वालों की सेटिंग होती है कहां तक होती है ये सभी जानते हैं वरना साधारण इंसान चुनाव जीतने के बाद करोड़ों में खेलते नजर नहीं आता जिम्मेदार पदो के लिए सिर्फ ट्रांसफर हेतु लाखो की भेंट ना चढ़ाई जाती साईकिल से चलने वाले लोग प्रधान बनने के बाद 30 लाख की गाड़ी से नहीं घूमते सब कुछ बिकता है भाई जिनको सैलरी , आवास, गाड़ी, सुरक्षा पावर मिलता है वे जब बिकते हैं तो भारत रोता है भारत मां रोती है अपने अस्तित्व को मिटते देख खून के आंसू रोती है परन्तु फिर भी हम एक अनजान डर के कारण ज़ुबान नहीं खोल पाते यही तो इस देश का रोना है अभी भी वक्त है अपने देश को अपनों द्वारा लूटने से बचाने का व कलम का सही उपयोग करने का सोचो आप सोच रहे हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं तो आप सच लिखने के बाद वह न्यूज पेपर, पोर्टल, चैनल के माध्यम से वायरल करेंगे ना हम मान लेते हैं कि उस खबर को 100 लोग पढेगे फिर 100 लोगों से चर्चा करेंगे वे सौ लोग अन्य लोगों से चर्चा करेंगे बात हजारों लाखों तक पहुंचेगी जनता को सच्चाई मालूम पड़ेगी बस यही काम है सच्ची पत्रकारिता का वह आप करिए राष्ट्रहित व जनहित में हम कलम के सिपाही इस देश व्यापी भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में कामयाब हो जाएंगे बस हमारी सोच राष्ट्रहित व जनहित में हो ! क्या आप जानते हैं हमारा लोकतंत्र जिन चार स्तंभो पर खडा़ वो है-1 न्यायपालिका ,2-कायॆपालिका ,3-विधायिका ,4-मीडिया ।
आपके दूसरे सवाल के लिए मेरा नजरिया यह है कि हाँ यह बात है कि न्यायपालिका के अलावा बाकी पर सवाल उठता रहता है,परंतु बात इतनी ज्यादा भी नही बढ़ी है कि हम यह कह दे कोई स्तंभ खतरे मे आ गया है। अगर आप भारत की तुलना पाकिस्तान से कर ले तो आपको जवाब अपने आप मिल जाएगा, जहाँ लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ गई है।पर कुछ पत्रकार हमारे देश में ऐसे भी जिन्हें केवल अपनी पब्लिसिटी से मतलब है। ऐसे लोगो पर बैन लगना चाहिए। हो सके तो जेल मे डाल दें तभी अक्ल ठिकाने आएगी। ऐ ऐसे लोग है जो आग भी लगाते और घी भी डालते है,बाद में अपने आपको मसीहा साबित करने से भी चूकते नही।ऐसी ही एक घटना है गुजरात दंगो की,ndtv की पत्रकार ,नाम बरखा दत्त ने चैनल पर दिखाया कि देखिए हमारे चैनल के दशॆको मै एक मुसलिम इलाके मे हूँ और यहाँ पर अभी कोई दंगा नही हुआ और कहा की कैसी सरकार है ,अभी तक कोई पुलिस वाला नही आया है। बस होना क्या था जैसे जगह का पता चला वहाँ भी दंगा होने शुरु हो गए।जब दगाँ शुरु हो गया तो 'आज तक' और जी' न्यूज'ने बुद्धिमानी दिखाई और अपने पत्रकारों को कहा कि हिंदू ,मुस्लिम जैसे शब्द न उपयोग करें । तो आओ आज कसम लेते हैं अपनी सर जमीन की की हम भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने हेतु प्रयासरत रहेंगे बस यही हमारा संकल्प होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस दलदल से मुक्ति पा सके!
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