शर्म करो,अपना इतिहास भूलने वाले स्वयं इतिहास बन जाते हैं
! स. संपादक शिवाकांत पाठक!
हमने अपना इतिहास भुला दिया है, २१ दिसम्बर से लेकर २७ दिसम्बर तक इन्ही ७ दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था, आज सारा हिन्दुस्तान क्रिसमस के जश्न में डूबा एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहा है। एक समय था जब पूरे पंजाब में ही नहीं समूचा देश इस हफ्ते को शोक सप्ताह के रूप में मनाता था। पंजाब में सब लोग जमीन पर सोते थे। यह सप्ताह सिख इतिहास में शोक का सप्ताह होता है, पर आज हम देखते हैं कि पंजाब समेत पूरा देश इस समय जश्न में डूबा रहता है।
सिक्खों के दशम गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह जी के पुत्रों की शहादत को शहीदी सप्ताह के रूप में गुरुद्वारों में मनाया जाता था। २२ दिसम्बर को गुरु गोबिंद सिंह ४० सिक्ख फौजों के साथ चमकौर के एक कच्चे किले में १० लाख मुगल सैनिको से मुकाबला कर रहे थे। इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे १७ वर्ष के अजीत सिंह मुगलों से लड़ते हुए शहीद हुए। बड़े भाई की सहादत को देखते हुए १४ वर्ष के पुत्र जुझार सिंह ने पिता से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी। एक पिता ने अपने हाथों से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा। मुगलों पर भारी साहेबजादा जुझार सिंह ने युद्ध के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों छोटे बेटे जोरावर सिंह ५ वर्ष और फतेह सिंह ७ वर्ष अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ युद्ध के दौरान पिता से बिछुड़ गए। रसोइया गंगू की धोखाधड़ी के वजह से सरहंद के नवाब वजीर खान ने उन्हें बंदी बना लिया। इस्लाम कबूल न करने पर २७ दिसम्बर को दोनों को दीवार में चुनवा दिया गया था।
क्या हम सबने गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को सिर्फ ३०० साल में ही भुला दिया ? जो कौमें अपना इतिहास अपनी कुर्बानियाँ भूल जाती हैं वो खुद इतिहास बन जाती हैं।
आज हमारे देश के हर बच्चे को इस शोक सप्ताह के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। क्रिसमस नहीं, देश के शहजादों की कुर्बानियों की याद दिलाना चाहिए। शोक सप्ताह के बाद ईसाईयों के नव वर्ष को मनाने के बजाय अपना नव वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाने की तैयारियां शुरू करनी चाहिए।
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