आप ने सुना होगा कि दुनियां बदल गई है!
स. संपादक शिवाकांत पाठक! लोग ज्यादातर कहते हैं कि दुनियां बदल गई है समय बदल गया लेकिन क्या बदल गया यह कभी आपने सोचा ? सूरज जहां से निकलता था वहीं से निकल रहा है जहां ढलता था वहीं ढल भी रहा है वृक्षों के पत्ते पहले भी हरे थे आज भी हैं पहले जो हवा थी आज भी हैं पहाड़, नदियां, झरने, तालाब , आम, इमली, खजूर व नीम के पेड़ आदि सब कुछ वैसे ही हैं फिर बदल क्या गया है बिल्ली , कुत्ता, गाय, भैंस पहले की तरह ही है तो क्या बदल गया है यहां पर एक बात याद आ रही है जो कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में लिखा कि जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी!! इंसान खुद बदल गया और इल्जाम कुदरत पर लगा रहा है हम खुद इतना गिर गए हैं कि दूसरों पर भी यकीन नहीं रहा, जबकि इंसान ही एक ऐसा जीव है जिसने इंसान को भी नहीं छोड़ा पैसे के लिए भाई ने भाई को मार डाला लोग अपने देश के विकास का पैसा हर उपाय करने के बाद हड़प रहे हैं लेकिन लोग यह क्यों नहीं बताना चाहते कि हम खुद बदल गए हैं हमारी हवस जब पैसे से पूरी नहीं हुई तो हम कुदरत को निवाला बनाने लगे जानवरों जैसे सांप, बिच्छू , कुत्ता, मुर्गा चमगादड़ आदि खाने लगे जबकि सैकड़ों वस्तुएं हमारे खाने के लिए बनाईं गई है हमारे अंदर इंसानियत नहीं रही चंद पैसों के लिए अपना जमीर मतलब ईमान बेच दिया हम खुद को जवाब देने लायक नहीं रहे लेकिन सवाल पर सवाल करते जा रहे हैं हमने अपने फायदे के लिए वृक्षों को काटना शुरू किया, हमने अपने फायदे के लिए हर चीज में मिलावट शुरू की तब खुद से पूछना चाहिए कि कौन बदल रहा है एक बात बताओ जब कोई भी प्राणी नहीं बदला तो इंसान ही क्यों बदल गया ? क्योंकि उसकी असीमित इक्छाओ का अंत नही हुआ अपने आप को सर्व श्रेष्ठ कहलाने की लालसा बनी रही पाव भर आटा ना खाने वाले इंसान ने करोड़ों की पूंजी इंसानियत की सीमा लांघ कर अर्जित की अब कुदरत के कहर से डर रहा है लेकिन फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा वाह रे इंसान , भगवान भी सोचा रहा होगा कि मैंने एक ऐसे प्राणी को सर्व श्रेष्ठ बना दिया जो अपने आप को व हमारे भी अस्तित्व कुदरत को मिटा रहा है! खुद सोचो कि कहीं आप ने गलत रास्ता अख्तियार तो नहीं कर लिया !
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