इतिहास गवाह है ब्राम्हणों ने कभी अपनी समाज के बारे में नहीं सोचा !


स. संपादक शिवाकांत पाठक हरिद्वार! यह एक कड़ुआ सच है जो कि सर्व विदित है प्राचीन महापुरुषों की मानें तो ब्राम्हण सदाचारी, विद्वान , व सभी के हित के लिए जीता रहा उसने कभी भी अपनी समाज का हित नहीं किया  सदैव देश व दुनिया को दिया है लेकिन लिया नहीं परन्तु बुद्धिजीवी होने के बाद भी वर्तमान समय की मांग को ना समझना आने वाली पीढ़ी के लिए कितना भयानक होगा यह भी ना सोचना विद्वानता नहीं कहला सकती आज वर्तमान में जाति वड पूरी तरह से हावी हो चुका है अपनी अपनी जातियों की समाज का गठन   राजनीति करण के अनुसार हो चुका है लेकिन ब्राम्हण अभी भी एक दूसरे के प्रभाव , वैभव आदि से ईर्ष्या कर रहा है अपने  बड़े पद पर रह कर गरीब ब्राम्हणों को  हीन भावना से देखने जैसी भूल का परिणाम शायद वह नहीं जानता ! यह एक दम सच है कि जाति वाद का जन्म दाता कोई और नहीं बल्कि देश की  राजनीति ही है तो फिर  ब्राम्हण ही सदैव गरीब क्यों रहे सब को धनुर्विद्या , ज्ञान, व सक्तियों को देने वाले ही हमेशा भीख क्यों मांगते रहे आज सबसे अच्छे अंक लाने वाला सरकारी नौकरी नहीं पा सकता यह कैसी विडंबना है क्या वर्तमान समय व परिस्थितियों को देखते हुए ब्राम्हणों के स्वभाव में परिवर्तन नहीं होना चाहिए अभी भी समय है वरना आज भी वेहद आभाव ग्रस्त जीवन बिताने वाले ब्राम्हण  कभी भी सहयोग की भावना नहीं रखेगें कश्मीर की घटना से भी सबक ना लेने का मतलब सिर्फ तबाही के शिवा कुछ भी नहीं है!


जैक वाले प्रसंग पर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया था, ‘‘ब्राह्मण विरोध भारतीय राजनीति की सचाई है। मंडल कमीशन के बाद यह उत्तर भारत में और मजबूत हो गया। हम (ब्राह्मण) तो मानो भारत के यहूदी जैसे निशाना बना दिए गए हैं और अब हमें इस के साथ ही रहना सीखना होगा।’’यदि इतने बड़े, तेज नेता ऐसी मानसिकता से ग्रस्त हैं, तो हिन्दू धर्म के शत्रुओं का मनोबल क्यों नहीं बढ़ेगा? ब्राह्मणों को गाली देना राजनीतिक फैशन जरूर है। लेकिन इस के पीछे की झूठी मान्यताओं, तथा इसे हवा देने वाली हिन्दू-विरोधी राजनीति को तो बेनकाब किया जा सकता है। फिर हमारे भ्रमित लोग और विदेशी भी झूठे मुहावरे छोड़ देंगे। यह सामान्य शिक्षा का काम है। यह कठिन भी नहीं है। इस में कोताही के जिम्मेदार सिर्फ भारतीय नेतागण हैं।


दूसरी ओर, ठोस सचाई यह है कि जैसे बदनाम यहूदियों ने ही गत दो सदियों में यूरोपीय सभ्यता की उन्नति में सर्वोपरि भूमिका निभाई, उसी तरह ब्राह्मणों ने तीन हजार से भी अधिक वर्षों से भारत की महान सभ्यता में अप्रतिम योगदान दिया। यहाँ तमाम ऐतिहासिक, लौकिक विवरणों में ब्राह्मणों का उल्लेख विद्वान, मगर निर्धन व्यक्तियों के रूप में आता है।भारत में राज्य-शासन प्रायः क्षत्रियों, जाटों, यादवों, मराठों और मध्य जातियों के लोगों के हाथ था। धन-संपत्ति वैश्यों, व्यापारियों के हाथ थी। ब्राह्मण का काम वैदिक ज्ञान का संरक्षण करना, शिक्षा देना और धर्म-संस्कृति की समग्र चिंता करना रहा। इसीलिए, संपूर्ण भारत में ब्राह्मणों का सम्मान सदैव रहा है। उन्हें कभी, किसी बात के लिए लांछित करने का कोई उदाहरण नहीं

Comments

Popular posts from this blog

कैसे बचेगी बेटियां,? नवोदय नगर में दिन दहाड़े प्रेमी ने गला रेत कर कर दी हत्या,! हरिद्वार,!

फुटबॉल ग्राउंड फेज 1 जगजीतपुर कनखल थाना क्षेत्र में घर में घुसकर बदमाशों द्वारा की गई मारपीट,,,!हरिद्वार,!

नवोदय नगर में घटी बहुत ही दुखद घटना!