कानून का डंडा क्या सिर्फ गरीबों पर बरसाने के लिए हैं ?
संपादक शिवाकांत पाठक!
ये बेचारा बूढ़ा आदमी कानून के नाते सिस्टम में मर चुका है और चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है साहब मैं जिंदा हूं तो सोचिए कहीं न कहीं सिस्टम में बहुत बड़ी कमी है
( अमीरों की धरती पर गरीबों का जीवन )
रिपोर्ट मुकेश राणा उत्तराखंड प्रभारी ,,, देश के जाने-माने 2 वकीलों की वकालत पर अदालत ने 4 महीनों के लिए रोक लगा दी थी। पढ़कर अच्छा भी लगा और बुरा भी। अब भला करोड़ों रूपए की रिश्वत एक ही केस में देने वाले वकील की सेहत पर 4 महीने के बेन से क्या फर्क पड़ता है। कौन-सा वो रोज कमाता और खाता है।
वैसे भी इस देश में कड़ी सज़ा भुगतने का टेण्डर गरीबों के नाम लिखा हुआ है। फिर गरीबी से बढ़कर और कोई सज़ा क्या हो सकती है। जिसे भगवान गरीब बनाकर सज़ा दे दे, उसे तो सज़ा भुगतते ही रहना है। बड़े लोगों पर तो ईश्वर की कृपा होती है। अगर उन पर ईश्वर की कृपा नहीं होती तो वे इस समाज में सर्वसुख साधन संपन्न कैसे होते। सभी जानते हैं इस बात को और जिस पर ईश्वर की कृपा हो उसे सज़ा देकर ईश्वर की नाराजगी कौन मोल लेगा।
अब उन गरीबों लोगों को ही ले लो, जिनके पास खाने को पैसा नहीं होता। वे अगर सफर करें भी तो उनके पास टिकट के लिए पैसे नहीं होते। घटिया पैसेंजर रेलों के जनरल बोगी में टॉयलेट के आसपास बैठकर किसी तरह नजदीक के गाँव जाने के लिए जाते समय अगर वे टिकिट निरीक्षक के हत्थे चढ़ते हैं तो सीधे जेल ही जाते हैं। और उसी रेल में ऊँचे दर्जों में सफर करने वाले तत्काल बटुवा निकाल टिकिट बनवा लेते हैं। अब बताईए भला जिसके पास टिकिट खरीदने के लिए पैसा ही नहीं है वो जेल जाए और जिसके पास पैसा है और टिकिट न खरीदे वो रसीद कटवाकर सफर करता है, क्या ये गरीबी और अमीरी का फर्क नहीं है।
मामला यहीं तक नहीं सीमित रहता।
अपने देखा होगा कि अपने ही शहर के कई मामले ऐसे ही जो हर शहर में होते हैं। कोई बड़ा डॉक्टर, नेता, अफसर या रसूख वाला गुण्डा, बदमाश पुलिस के हत्थे चढ़ता है और उसे जमानत नहीं मिलती तो वो अचानक गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। और तब तक बीमार रहता है जब तक उसकी जमानत नहीं हो पाती। जेल जाने की बजाय वो अस्पताल के पेइंग वार्ड में जमानत के इंतज़ार में अपने सगे-संबंधियों से मिलता रहता है। दूसरी ओर भगवान का सताया गरीब होता है जो रात को कहीं जाते वक्त पुलिस वालों के हिसाब से संदिग्ध होने के कारण प्रतिबंधात्मक धाराएँ 109, 151 के तहत बुक होकर अदालत पहुँचता है। रूपया पैसा न होने के कारण न उसे जमानत मिलती और न ही वो बीमार होकर किसी अस्पताल में फाइव स्टार सुविधा का लाभ ले पाता है। वो जाता है सीधा जेल क्योंकि उसको तो सबसे बड़ी सज़ा गरीबी भगवान ने दे रखी है। अब फिर भगवान के सताए आदमी की मदद कर भगवान से दुश्मनी कौन लेगा ?
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